नागपत्री एक रहस्य-8

दिनकर जी उनके ससुर जी (मास्टर जी) की बाते बड़े ध्यान से सुन रहे थे, वे उनके द्वारा बताई गई हर बातों पर बहुत गौर से ध्यान दे रहे थे, मास्टर जी ने दिनकर जी को बताया कि, 

                   किस तरह नाग कन्याओं का जन्म शिव जी की पुत्री के रूप में, और बाद में मां पार्वती के सहर्ष और आशीर्वाद से उन्होंने मानव जाति के कल्याण और उत्थान के लिए उत्तम ग्रंथों को लिखा है, यहां तक कि वे खुद मानव जाति के साथ आ कर रही, 



कुछ का विवाह ऋषि कुमारों से हुआ, तो कुछ ने तपस्या से असीम शक्तियां प्राप्त कर उत्तम स्थान प्राप्त किए, उन्होंने बताया कि किस तरह नाग कन्याओं ने मानव जाति में विवाह किया, जिसका उल्लेख सनातन धर्म में कई बार किया गया है , 


* जिनमें मुख्य रुप से जरत्कारु, जिनका विवाह जरत्कारु ऋषि से हुआ, 
* नाग कन्या उलूपी का विवाह अर्जुन से हुआ,
* मेघनाद अर्थात इंद्रजीत जिनका विवाह नागराज वासुकी की पुत्री सुलोचना से हुआ,
* भीम पुत्र घटोत्कच का विवाह नाग कन्या अहिलावती से हुआ,


ऐसे ना जाने कितने ही उदाहरण प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से शास्त्रों में मिल जाएंगे, अब तो जैसे दिनकर जी के मन में सवालों की बाढ़ से उठ गई,
          उन्होंने अपने ससुर जी को गुरु मान उनसे अनुरोध किया कि, वे विस्तार पूर्वक इन नाग कन्याओं का विवाह कैसे और किस स्थिति में हुआ, यह उन्हें बताएं, उनकी उत्सुकता देख चंदा के अनुग्रह पर मास्टर जी ने कहना प्रारंभ किया, पौराणिक कथाओं के अनुसार.....


** जरत्कारु ऋषि का नाग कन्या के साथ विवाह.....

पौराणिक कथा के अनुसार, वासुकी नाग की बहन जरत्कारु का विवाह जरत्कारु ऋषि से हुआ था, जरत्कारु ऋषि ने तपस्या करके अपना शरीर क्षीण कर लिया था, इसलिए उनका नाम जरत्कारु पड़ा, वहीं यह भी संयोग था कि नागराज वासुकी की बहन ने भी तपस्या से अपने शरीर क्षीण कर लिया था, इसलिए भी उनका नाम भी जरत्कारु कहलायी।
                जरत्कारु ऋषि विवाह नहीं करना चाहते थे, इसलिए ब्रह्मचर्य धारण करके तपस्या में लीन हो गए थे, उन दिनों राजा परीक्षित का राजत्व काल था, जरत्कारु ऋषि काफी नियमों का पालन करते थे, और वे अपने खानदान में इकलौते बचे थे।

मुनि वर के पितर इस बात से चिंतित थे, और वंश परंपरा के नाश के कारण नरक में गिरते जा रहे थे, क्योंकि उनका नाम लेने वाला और कोई नहीं था, जिससे वह पुण्य लोक से नीचे गिर रहे थे।
              पितरों के दुख देखकर जरत्कारु ने विवाह का निश्चय किया लेकिन अपनी शर्तों पर, उन्होंने कहा कि मैं उस कन्या से विवाह करूंगा, जिसका नाम जरत्कारु होगा और विवाह के बाद उसके भरण-पोषण का भार नहीं उठाउंगा, तब नागराज वासुकी की बहन जरत्कारु मुनि वर से विवाह करने पहुंची। 

विवाह के बाद एक दिन सायंकाल के समय ऋषि अपनी पत्नी की गोद में सिर रखकर सो रहे थे, ऋषि पत्नी धर्म संकट में फंस गई थीं , लेकिन उन्होंने ऋषि को जगा दिया, इसपर वह नाराज हो गए और छोड़कर चल दिए,  तब जरत्कारु ने कहा कि आप आपके और मेरे विवाह का एक प्रयोजन था, कि हमारे संयोग से एक पुत्र होगा, जो जनमेजय के सर्प यज्ञ से बचाएगा।
            अभी तो मेरे गर्भ में कोई संतान है नहीं, तब जरत्कारु ऋषि ने कहा कि तुम्हारे गर्भ में एक दिव्य संतान है, जो बहुत बड़ा तपस्वी होगा, यह जरत्कारु ऋषि के पुत्र आस्तिक मुनि कहलाए, जिन्होंने जनमेजय के सर्प यज्ञ को रोककर सांपों को बचाया था।



** अर्जुन का नाग कन्या उलूपी से विवाह....

कौरव्य नाग की पुत्री उलूपी का विवाह पांडव पुत्र अर्जुन से हुआ था, जलपरी नागकन्या उलूपी अर्जुन की चौथी पत्नी थीं, कथा के अनुसार, द्रौपदी के महल में एक साल में केवल एक ही पांडव प्रवेश कर सकता था, अगर कोई आ जाता था तो उसको वनवास जाना पड़ता था। 
                एक दिन युधिष्ठिर के होते हुए अर्जुन द्रौपदी के महल में पहुंच गए, तब उनको वनवास जाना पड़ा, वन-वन भटकते हुए अर्जुन का नागों से युद्ध हो गया, और उसमें बड़ी संख्या में नाग मारे गए थे, इसलिए नागवंशी अर्जुन से बदला लेना चाहते थे, तब उलूपी को अर्जुन को मारने के लिए भेजा गया था।

अर्जुन को देखकर नागकन्या मोहित हो गई और मारने का विचार त्याग कर प्रेम करने लगी, लेकिन अर्जुन ने प्रेम करने के लिए मना कर दिया तब सम्मोहन शक्ति से अर्जुन को बेहोश करके नागलोक ले गईं, जहां उलूपी ने अर्जुन को अपने पिता से मिलवाया और शत्रुता खत्म करने को कहा।
           उलूपी ने बताया कि अर्जुन को नागों से दुश्मनी नहीं है, उनको केवल एक गलतफहमी हो गई थी, अर्जुन उलूपी की इस बात से प्रभावित हो गए थे और उनसे विवाह कर लिया, कुछ सालों तक अर्जुन नागलोक में रहे, जहां उनका एक इरावन नाम का एक पुत्र हुआ, एक बार मृत्यु प्राप्त हो चुके अर्जुन को नागमणि से उलूपी ने पुनर्जीवित कर दिया था।



**मेघनाद का नाग कन्या सुलोचना से विवाह....

रावण का पुत्र मेघनाद पराक्रमी योद्धा था, उसे इंद्रजीत के नाम से भी जाना जाता था, एक बार जब मेघनाद सभी लोक पर अपना विजय पताका फैला रहा था, तब वह उस दौरान नागलोक भी पहुंचा था, नागराज वासुकी मेघनाद के पराक्रम को देखकर काफी प्रसन्न हुए। 
           तब उन्होंने अपनी पुत्री सुलोचना का विवाह मेघनाद के साथ कर दिया था, राम-रावण युद्ध के दौरान सुलोचना ने युद्ध में जाने से मेघनाद को काफी रोका था ,और उनको राम और लक्ष्मण के बारे में भी बताया था, लेकिन वह अपना धर्म समझकर युद्ध में शामिल हुए, जहां मेघनाद का वध लक्ष्मण के हाथों हुआ।



** घटोत्कच का नाग कन्या अहिलावती से विवाह.....

महाभारत में भीम और हिडिम्बा का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम घटोत्कच था, घटोत्कच का विवाह नाग कन्या अहिलावती से हुआ था, घटोत्कच और अहिलावती का एक पुत्र हुआ था, जिसका नाम बर्बरीक था।
           बर्बरीक एक महान योद्धा था, एक लोककथा के अनुसार, अहिलावती नागराज वासुकी की पुत्री थीं और देवी पार्वती ने भगवान शिव को बासी फूल चढ़ाने के लिए उनको श्राप भी दिया था।



इस प्रकार दिनकर जी ने मास्टर जी के द्वारा इन सब कहानियों को ध्यानपूर्वक सुना, और सुनकर वे अचंभित भी थे, कि उन्हें इन सब रहस्यों  का ज्ञान नहीं था, 
         दिनकर जी ने मास्टर जी को धन्यवाद भी करते हैं, क्योंकि उन्होंने इन सब बातों का रहस्य पहली बार मास्टर जी के मुख से सुना था, अब आगे दिनकर जी को और किन किन रहस्यों के बारे में पता चलता है????

क्रमशः.....

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 01:55 PM

Nice

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